बुरहानपुर का अद्भुत अडबाल मेला: 400 साल पुरानी परंपरा में नाग देवता की बांबी पर उमड़ा आस्था का सैलाब

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अडबाल मेला

बुरहानपुर में ऋषी पंचमी को अडबाल पंचमी भी कहा जाता हैं बुरहानपुर के उखड्ड गांव में उतावली नदी को पार कर भक्त यहां नंगे पांव जंगल से होकर उबड़ खाबड़ रास्ते से होते हुए पंहुचते हैं नाग देवता के देवालय यहां चतुर्थी की रात और पंचमी के प्रारंभ होते ही अंधेरों में निकल जाते हैं लोग पुजा करने, यहां जाने पर दो विषाल नाग देवता की बांबी होती है ।

 

जिस पर लोग करते है ंपुजा और लेते हैं मन्नत, मन्नत पूर्ण होने पर छोडते हैं नाग देवता का जोडा चढाते हैं चांदी का छत्र, हजारों की संख्या में यहां पंहुचते है देवालय और निभाते हैं पंरपरा, चढाते हैं मैदे की पूरी जो घी में बनी हो, विष्व में एक ही स्थान हैं जहां चढता हैं इस प्रकार का प्रसाद।

 

– बुरहानपुर से 7 किमी दूर उतावली नदी के पार उखड गांव में चतुर्थी की रात और पंचमी के प्रारंभ होते ही निकल पडते हैं लोग ,यह परंपरा करीब 400 वर्ष पुरानी हैं जो आज भी उतनी ही अदब के साथ निर्वाह कि जा रही हैं जैसा की 400 वर्ष पुर्व चलती थी।

 

 

यहां लोग हाथों में टोकरी में बंद नाग का जोडा लेकर निकल पडते हैं या हाथों में होता हेैं मैदे की पूरी जो कि एक विषेष प्रकार के बांस के खाने बनी हुई होती हैं उसपर पूरीयां टंगी होती हैं यह पुरी मैदे और घी की बनी होती हैं यहां हजारों भक्त पंहुचते हैं ।

 

 

इस नाग देवता की चिकनी मिट्टी से बनी बांबी की पूजा करने ,कहा जाता हैं इस बांबी में नाग देवता वर्ष भर निवास करते हैं और आज के दिन केवल नसीब वालों को ही दर्षन देते हैं यहां जो सच्चे मन से मन्नत मांगता हैं उसकी मन्नत भी पुरी होती हैं अब इस उखड गांव में देवालय तक पंहुचने के लिएं।

 

उतावली नदी को पार करना होता हैं यहां भक्त आस्था मे डूब जाते है जिससे बच्चा बुढा और जवान सभी नाग देवता के इस चमत्कार और 400 वर्ष पुरानी बांबी का दर्षन कर सके जिन लोगों की मन्नत पूर्ण हो जाती हे।

 

वह इस बांबी पर पिटारे में बंद नाग देवता के जोडे को रखता हैं और बाद में उसे पास ही के जंगलों में छोड देते हैं जिससे यदि सांप जंगलों में चले जाते हैं तो इच्छापूर्ती पूर्ण होना मानी जाती हेैं और यदि वह वहीं रह जाते हैं तो कार्य में बाधा समझी जाती हैं ।

 

इस चमत्कार और बांबी के दर्षन के लिये भक्त पूरे देष भर से आते हैं।

 

चाहे वह म.प्र. के हो, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेष, गुजरात, के ही क्यों ना हो ? सभी लोग पूजा करने पंहुचते हैं यहां। इस चमत्कारी बांबी को देखने अधिकांषतः गुजराती मोढ और भावसार समाज के नाग भक्त अधिक संख्या में आते हैं ।

 

 

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