200 वर्ष पूर्व की परंपरा के अनुसार पग्घडी पद्धति से माँ अंबा को अपने घर में विराजित किया था।

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परंपरागत गरबे का किया विसर्जन

 

बुरहानपुर के गुजराती मोढ़ वणिक समाज के देवकर परिवार की अनिता गोपाल देवकर ने नवरात्र के पढ़वे को 200 वर्ष पूर्व की परंपरा के अनुसार पग्घडी पद्धति से माँ अंबा को अपने घर में विराजित किया था।

 

इसके बाद लगातार 16 दिनों तक पूजा -आराधना गरबे खेलकर माता का जगराता किया और ब्रह्म मुहूर्त में मां अंबा को ताप्ती नदी में नम आंखों से विसर्जित कर विदाई दी।

 

बुरहानपुर जिले में गुजराती मोढ़ वणिक समाज गरबा उत्सव के लिए जाना पहचाना जाता है मां अंबा की आराधना नवरात्र में ही नहीं बल्कि नवरात्र के बाद भी और जोर-शोर से करने लगते हैं ।

 

इस प्रकार मां अंबा को गरबे खेलकर देर रात्रि तक मनाने का कार्य करते हैं यही नहीं घरों में भी अलग-अलग वेशभूषा जैसे काठियावाड़ी मारवाड़ी राजस्थानी आदि वेशभूषा में कपड़े पहन कर गरबे भी करते हैं ।

 

 

इस प्रकार यह सिलसिला मां को मनाने का चलता ही रहता है और कब मां अम्बा की विदाई का दिन आ जाता है यह भक्तों को पता ही नहीं चलता, गुजराती मोढ़ समाज के गोपाल देवकर ने बताया कि यह सिलसिला पिछले 200 वर्षों से लगातार चल रहा है।

 

माँ अंबा की अगवानी पग्घडी पद्धति से करते हैं तो वही फूल माला और घाटड़ी उड़ाकर मां अंबा को विदाई भी देते हैं मां अंबा की इस विदाई पर देवकर परिवार सहित सभी भक्तों की आंखें नम थी और ब्रह्म मुहूर्त में माँ अम्बा को सिर पर रख डॉ अनिता देवकर ने ताप्ती नदी में विसर्जित कर विदाई दी।।

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