बुरहानपुर में भी देखने को मिली छठ पूजा की भव्यता।
बुरहानपुर में इस वर्ष भी बिहार की परंपरा को जीवित रखते हुए सूर्य की उपासना का महापर्व छठ पूजा धूमधाम से मनाया गया। पति, परिवार की लंबी आयु, सुख-शांति और समृद्धि की कामना के लिए उत्तर भारतीय समाज के लोग ताप्ती नदी के किनारे राजघाट पर एकत्रित हुए और सूर्य देवता की आराधना की। पूरे उत्तर भारत में विशेष स्थान रखने वाले इस पर्व का बुरहानपुर में भी उत्साहपूर्ण माहौल देखने को मिला।
वहीं हम आपको बता दे कि छठ पूजा उत्तर प्रदेश और बिहार के प्रमुख पर्वों में से एक है और इन राज्यों के लोग इसे बहुत आस्था और भक्ति के साथ मनाते हैं।
इस परंपरा को निभाते हुए, बुरहानपुर के उत्तर भारतीय समाज ने भी इस महापर्व का आयोजन किया। राजघाट पर ताप्ती नदी के किनारे सुबह से ही भक्तों की भीड़ उमड़ने लगी थी। सभी ने श्रद्धा भाव से सूर्य देवता की पूजा की और अर्घ्य अर्पित किया।
यह पूजा संध्या अर्घ्य के साथ शुरू होती है, जिसमें व्रती महिलाएं कठिन उपवास करती हैं और नदी किनारे सूर्य को अर्घ्य अर्पित करती हैं। यह पूजा सूर्यास्त तक चलती है और अगले दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ उपवास का समापन होता है।
यहां एकत्रित भक्तों में बिहार और उत्तर प्रदेश के लोग शामिल थे, जिन्होंने अपने परिवार की सुख-समृद्धि के लिए विधि-विधान से पूजा की।
बिहार से आई पूजा जी ने बताया, हमे बताया कि “छठ पूजा हमारे लिए बहुत खास है। यह न केवल हमारे परिवार की खुशहाली की कामना का पर्व है,
बल्कि हमारी सांस्कृतिक पहचान और हमारे संस्कारों का प्रतीक भी है। इस पर्व में सूर्य देवता और छठी मइया को धन्यवाद दिया जाता है।
” पूजा जी ने बताया कि छठ पूजा में कठिन उपवास रखने और सूर्य देवता को अर्घ्य देने का एक अलग ही महत्व है। इसे मनाते हुए हम खुद को अपने जड़ों के करीब महसूस करते हैं।
राजघाट पर एकत्रित श्रद्धालु गन्ना, नारियल, फल और पवित्र जल से सूर्य देवता को अर्घ्य अर्पित कर रहे थे। इस पर्व का विशेष महत्व है ,
क्योंकि इसमें छठी मइया की भी पूजा की जाती है, जो लोक मान्यता के अनुसार संतान सुख, स्वास्थ्य और समृद्धि की देवी मानी जाती हैं।
छठ पूजा का निष्कर्षन
बुरहानपुर में इस बार छठ पूजा ने उत्तर भारतीय समाज को अपने रीति-रिवाजों और परंपराओं से जुड़ने का अवसर दिया। ताप्ती नदी के किनारे होने वाले इस आयोजन में बड़ी संख्या में लोगों ने भाग लिया और पूरे श्रद्धा भाव से सूर्य देवता को अर्घ्य अर्पित कर पर्व का समापन किया।
यह पर्व अब बुरहानपुर में भी एक सांस्कृतिक आयोजन का प्रतीक बनता जा रहा है, जो स्थानीय समाज में एकता और परंपराओं के प्रति आदर को दर्शाता है।