संघर्ष, स्वाभिमान और अधिकारों की लड़ाई: मानव अधिकार दिवस पर जन्मे एक कर्मठ योद्धा की कहानी

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आज हम आपको ऐसी सख्शियत से रूबरू कराने जा रहे हैं, जिन्होन सिर्फ और सिर्फ महिमा बनकर दूसरे के हक के लिए लडाई लड़ी है तभी तो कहलाते है,गरीबों के मसीहा: ठाकुर संतोष सिंह दीक्षित, संघर्ष और सेवा की मिसाल

ठाकुर संतोष सिंह दीक्षित के जन्मदिन पर लक्की एक्सप्रेस न्यूज संपादक राजू सिंह राठौड़ ने की विशेष चर्चा।

 

संघर्ष, स्वाभिमान और अधिकारों की लड़ाई: मानव अधिकार दिवस पर जन्मे एक कर्मठ योद्धा की कहानी।

मैं भारत की उस संस्कृति ,भारत के उस ग्रामीण क्षेत्र से आता हूं जो मध्य प्रदेश का आखिरी गांव है जिसका नाम इच्छापुर देवी है, मां इच्छा देवी के नाम से प्रसिद्ध इच्छापुर देवी हालांकि मैं मेरा जन्म बुरहानपुर का है बात होती है 1965- 10 दिसंबर की जब मेरा जन्म हुआ था उस समय मेरे नाना जी स्वर्गीय वैद्यनाथ सिंह चौहान साहब बुरहानपुर के ब्लॉक डेवलपमेंट ऑफिसर थे यानी की बीडियो थे मेरे माता-पिता उस समय इच्छापुर में शिक्षक -दंपति के रूप में कार्य कर रहे थे जिस दिन मेरा जन्म हुआ उस दिन मानव अधिकार दिवस मनाया जाता है ,इसलिए मेरे स्वभाव में मेरे नेचर, में मेरी आदत में, बचपन से ही अपने अधिकारों के लिए हमेशा संघर्ष किया मैं आपको बताना चाहता हूं स्वर्गीय शिव भैया 1972 में शाहपुर विधानसभा चुनाव लड़े उस समय मात्र 7 साल का था उनका प्रचार प्रसार करता था मैं गाय -बछड़ा चुनाव चिन्ह होता था इस समय मुक्ताईनगर से हमारे भारत की राष्ट्रपति माननीय श्रीमती प्रतिभा ताई पाटिल जो कि वहां से इदलाबाद अब मुक्ताईनगर के नाम से जाना जाता है।

वहां से विधायक होती थी उस 7 साल की उम्र में उनके साथ मैं बस स्टैंड पर स्वर्गीय शिव भैया जी के चुनाव प्रचार में डांस किया था मैं उस इच्छापुर देवी से आता हूं जहां आपातकाल के बाद देश की प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी  आपातकाल के बाद बुरहानपुर जिले में आई थी और उनके मानस पुत्र स्वर्गीय शिव भैया उनको इच्छापुर देवी लेकर आए थे और इच्छापुर देवी रोड पर हमारा शासकीय क्वार्टर था उसी के सामने मैंने अपने साथियों के साथ गांधी टोपी पहनकर उनकी कार के सामने लेट कर हमारे गांव में शिक्षक नहीं है इस हेतु गाड़ी के सामने सो गया था मात्र 10 वर्ष की उम्र थी मेरी तब से ही संघर्ष करता रहा हूं ।

 

क्योंकि मैं मानव अधिकार दिवस 10 दिसंबर को पैदा हुआ हूं प्राथमिक ,माध्यमिक शिक्षा के बाद हाई स्कूल की शिक्षा मैं सुभाष हाई स्कूल से किया, डॉक्टर जाकिर हुसैन कॉलेज से बीएससी किया इसके बाद में 1990 में कृषि उपज मंडी समिति में दैनिक वेतन भोगी के रूप में में आया 440/ रुपए से वेतन मिलना शुरू हुआ इसके बाद तो और ज्यादा संघर्ष शुरू हुआ दैनिक वेतन भोगी से नौकरी की शुरुआत हुई उस समय मंडी में दैनिक वेतन भोगियों को बंधुआ मजदूर समझा जाता था क्योंकि मैं पढ़ा लिखा था स्वाभिमानी था यह चीज मुझे सहन नहीं हुई मैं इस समय दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी संगठन बनाया जिसे मैं अध्यक्ष बना सब लोगों को इकट्ठा किया सबसे पहले चपरासी, चौकीदार सभी को बताया कि दैनिक वेतन भोगी है तो क्या हुआ हमारी भी कोई इज्जत है ऐसे नहीं चलेगा स्वाभिमान से जीना सीखो सभी को हिम्मत प्रधान की सभी को अपने अधिकारों के प्रति सचेत किया सभी को उत्साहित यहीं से कर्मचारी आंदोलन शुरू हुआ नियमित कर्मचारियों के विरुद्ध दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी की लड़ाई शुरू हुई सबसे बड़ी विसंगति हम लोगों को वोट देने का अधिकार था चुनाव में कर्मचारी चुनाव नहीं लड़ सकते संगठनों मैं ऐसे कैसे हो सकता है ।

 

चुनाव हुए पहले खंडवा जिला हुआ करता था पार्वती धर्मशाला में चुनाव है हम लोगों ने एक ही शर्त रखी जो दैनिक वेतन भोगियों को साथ देगा उनकी इज्जत की लड़ाई लड़ेगा, स्वाभिमान की लड़ाई लड़ेगा, हम उनके साथ देंगे और हमने अपना जिला अध्यक्ष, अपना उपाध्यक्ष खंडवा जाकर निर्वाचित कर रहा है मैंने स्वयं चुनाव नहीं लड़ा मैंने हमारे चौकीदार स्वर्गीय रमेश बाविस्कर जिला का प्रथम उपाध्यक्ष बना कर लाया जिला अध्यक्ष रमेश भाई गंगराड़े को बनाया इसके बाद भी संघर्ष जारी रहा दैनिक वेतन भोगी से कुशल,

 

अर्ध कुशल किस श्रेणी में लेने के लिए श्रम न्यायालय में प्रकरण दर्ज किया प्रकरण में जीते सभी कर्मचारी कुशल श्रेणी में आए उसके बाद 2000 में कांग्रेस सरकार ने 28000 दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों को प्रदेश में जहां भी नियुक्ति सभी को बाहर किया उसके विरुद्ध मैंने हाईकोर्ट जबलपुर में अपील की सर्वप्रथम मध्य प्रदेश में बुरहानपुर मंडी का स्थगन आदेश लेकर आया उस आदेश पर अन्य कर्मचारियों को लाभ मिला 6 महीने का एक्सटेंशन मिला स्थगन आदेश की अवधि समाप्त होने के बाद हम पुन हाई कोर्ट गए लेकिन हमारी अपील खारिज हो गई, सिंगल बेंच में खारिज होगी, डबल बेंच में खारिज हो गई, ट्रिपल बेंच में अपील की ट्रिपल बेंच ने कहा आप लेबर कोर्ट जाइए लेबर कोर्ट में प्रकरण दर्ज हुआ इसी दौरान शाहपुर उपचुनाव हुआ 2001 में मैंने निर्दलीय चुनाव लड़ा लगभग 3000 वोट मैंने प्राप्त की है जीतने वोट प्राप्त की उतने वोटो से ही शाहपुर विधानसभा सीट कांग्रेस हारी और रामदास शिवहरे जी चुनाव जीते मुझे लाखों रुपए का लालच दिया गया लेकिन मैं नहीं स्वीकार और कहा जो भी हमारी नौकरी वापस दिलाएगा हम उसको साथ देंगे कर्मचारी की ताकत होती है मात्र 15000 रुपए में चुनाव लड़ा और 3000 वोट पाए इसके बाद लेबर कोर्ट में प्रकरण जीते 3:5 वर्ष का अनुषंगिक लाभ मिला पुण नौकरी ज्वाइन की,

 

इसी दौरान बुरहानपुर ताप्ती मिल का मै अध्यक्ष बना 282 बदली श्रमिकों को कार्य से निकाल दिया गया था जिसके लिए संघर्ष किया और उनके लिए भी लेबर कोर्ट में प्रकरण दर्ज कर प्रकरण में विजय प्राप्त की इसके बाद मैं मध्य प्रदेश के मंडी कर्मचारियों का नियमित करने के लिए उच्चतम न्यायालय में जबलपुर में प्रकरण दायर किया हम उस प्रकरण में जीते और कोर्ट ने हमें 2008 से नियमित माना और लगभग सभी कर्मचारियों को 7:50 लेकिन संघर्ष अभी थमा नहीं था केंद्र सरकार ने कृषि कानून को लेकर आई जो कि मंडियों को खत्म करने वाला कानून था जिसके विरुद्ध में मध्य प्रदेश में आवाज उठाई लगभग एक महा भोपाल में रहकर आंदोलन किया नतीजा या निकला सरकार ने कृषि कानून वापस लिया कर्मचारियों के साथ-साथ किसानों की जीत हुई नियमित करण के समय गलती हो गई हमने उसमें पुरानी पेंशन की मांग नहीं की खैर हमारे आदेश पर प्रदेश के मंडी बोर्ड के सारे कर्मचारी नियमित हुए मेरे द्वारा किए गए संघर्ष के कारण मुझे सरकारी विरोधी माना जाता है जबकि ऐसा कुछ नहीं था सत्यता यही है कर्मचारी हित में आंदोलन किया उनकी मांगों को प्रखरता से उठाया जिसको कुछ असंतुष्ट ने सरकार तक बात पहुंचाई नेताओं तक बात पहुंचाई यह हमारा विरोधी है जबकि मैं किसी का विरोध नहीं हम केवल व्यवस्था के खिलाफ है हमें किसी भी संगठन या सरकार से सरोकार नहीं हमारा उद्देश्य कर्मचारी हित होता है।

 

क्योंकि मैं कर्मचारी महासंघ का प्रदेश अध्यक्ष हूं ,नेशनल मूवमेंट ऑफ ओल्ड पेंशन स्कीम का प्रांतीय संयोजक, मंडी कर्मचारी कल्याण संघ नई दिल्ली का राष्ट्रीय संगठन महामंत्री हूं संयुक्त मोर्चा मोर्चा का संयोजक हूं राजपूत समाज का प्रदेश का उपाध्यक्ष हूं इसके अलावा मैं भारतीय मजदूर संघ का लगभग 7 वर्ष जिला अध्यक्ष रहा हूं स्वाभाविक है जब जिम्मेदारी ली हो तो उनके लिए आवाज उठाना पड़ेगी और जो भी आवाज उठाता है उसे विरोधी माना जाता है।

लेकिन विरोध का मतलब या नहीं कि हम किसी के सरकार की विरोधी है किस दल की विरोधी है मेरा अपना स्पष्ट उद्देश्य है कर्मचारी हित, सामाजिक हित अभी पुरानी पेंशन की लड़ाई जारी है और हम आदरणीय बाबा साहब अंबेडकर के सिद्धांतों पर चलने वाले लोग हैं जिन्होंने इस देश का संविधान बनाया है उसे संविधान का जब पालन सभी करते हैं तो कर्मचारियों के लिए भी कीजिए जब एक सांसद एक विधायक एक दिन का नेता बन जाता है ।

 

पद प्राप्त करता है तो वह पुरानी पेंशन के दायरे में आ जाता है तो कर्मचारी क्यों नहीं आता इस प्रकार का पक्षपात क्यों समान नागरिक संहिता की बात करते हो तो समान अधिकार दीजिए तकलीफ यहां है तकलीफ किसी से नहीं जो माननीय राष्ट्रपति , प्रधानमंत्री , केंद्रीय मंत्री , राज्यपाल ,मुख्यमंत्री ,सांसद , विधायक जो सुविधा आप लेते हैं वही सुविधा हमें दीजिए आप हमारे वोट लेकर उच्च पद प्राप्त करते हैं तो हमको देने में क्या तकलीफ है वहां पर आर्थिक भोज का बहाना बनाया जाता है ।

 

जबकि वास्तविकता ऐसा कुछ नहीं है का मतलब है हम किसी राजनीतिक दल या किसी संगठन के खिलाफ नहीं है हमारी अपनी लड़ाई कर्मचारी हितों के लिए होती है व्यवस्था के खिलाफ हम लड़ते हैं और लड़ते रहेंगे चाहे जो अंजाम हो मांग हमारी पूरी हो पुरानी पेंशन लागू हो जो आप लेते हैं ।

वही हमें दीजिए आप 10-10 पेंशन लेते हमें कोई तकलीफ नहीं लेकिन हमें केवल एक पेंशन दीजिए और बुढ़ापे में स्वाभिमान से जीने का अधिकार दीजिए सुप्रीम कोर्ट भी कह चुका है पुराने पेंशन पाना कर्मचारियों अधिकारियों का अधिकार है यह कोई अनुदान नहीं है अनुग्रह राशि नहीं है या हमारा अधिकार क्योंकि मेरे माता-पिता सेवानिवृत्ति क्रमण प्राचार्य रह चुके हैं।

मां इस दुनिया में नहीं है लेकिन पिता है और उन्होंने कहा है अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ो क्योंकि मैं मानव अधिकार दिवस 10 दिसंबर 1965 को जन्म हुआ है ।

अधिकारों के लिए सभी को लड़ना चाहिए हिम्मत से लड लड़कर डर कर नहीं राजपूत समाज के लिए भी कार्य किया है स्वर्गीय ठाकुर महेंद्र सिंह  पूर्व सांसद हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे हैं उनके नेतृत्व में उनके साथ हमने सामूहिक विवाह परिचय सम्मेलन विधवा बिहार सब कुछ किया जो बुरहानपुर से शुरू होकर संपूर्ण भारत देश में परचम लहरा रहा है 60 वर्ष में प्रवेश कर रहा हूं लेकिन वही जोश जज्बा हिम्मत आज भी कायम है।

वह केवल और केवल कर्मचारी हितों के लिए सामाजिक हितों के लिए अपने परिवार के लिए लड़ेंगे जीतेंगे अपना अधिकार पाएंगे।

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