ई-अटेंडेंस पर भड़का मध्यप्रदेश का शिक्षा अमला, व्यवस्था को बताया अविश्वास की निशानी

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ई-अटेंडेंस प्रणाली पर प्रदेशभर में गहराया असंतोष

शिक्षकों और अधिकारियों ने बताया व्यवस्था पर अविश्वास का संकेत, प्रदेशव्यापी विरोध की चेतावनी

 

बुरहानपुर, मध्यप्रदेश में लोक शिक्षण संचालनालय द्वारा लागू की जा रही ई-अटेंडेंस प्रणाली को लेकर प्रदेशभर में गहरी असहमति उभर रही है। यह असंतोष अब केवल शिक्षकों तक सीमित न रहकर ब्लॉक एवं जिला स्तरीय अधिकारियों तक पहुँच चुका है।

 

 

कर्मचारी महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष एवं नेशनल मूवमेंट ऑफ ओल्ड पेंशन स्कीम के प्रांतीय संयोजक तथा संयुक्त मोर्चा के प्रदेश उपाध्यक्ष ठाकुर संतोष सिंह दीक्षित ने इस मुद्दे पर स्पष्ट शब्दों में कहा कि —

 

“यह प्रणाली शिक्षा विभाग के अमले की साख और गरिमा पर सीधा हमला है। इससे समाज में यह संदेश जाएगा कि अधिकारी व कर्मचारी लापरवाह और अकुशल हैं, जिन पर अब तकनीकी निगरानी करनी पड़ रही है। इससे विभाग की आंतरिक व्यवस्था और अधिकारियों की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लगते हैं।

 

हर दिन मुंह दिखाई, तब वेतन?” – जिला संयोजकों की आपत्ति

संयुक्त मोर्चा के जिला अध्यक्ष ठाकुर संजय सिंह गहलोत, डॉ. अशफाक खान, धर्मेंद्र चौकसे, अनिल बाविस्कर, बृजेश राठौर, ठाकुर अरविंद सिंह, राजेश साल्वे, राजेश पाटील, श्रीमती कल्पना पवार और श्रीमती प्रमिला सागर ने कहा कि यदि यह ई-अटेंडेंस प्रणाली लागू हुई तो हर दिन कैमरे के सामने उपस्थिति दर्ज कराना अनिवार्य हो जाएगा, और यदि ऐसा नहीं किया गया तो वेतन रोके जाने की नौबत आ सकती है। यह शिक्षा क्षेत्र के कर्मचारियों के आत्मसम्मान और गरिमा को ठेस पहुंचाने वाली व्यवस्था है।

 

*पुरानी निरीक्षण व्यवस्था के बावजूद नई प्रणाली क्यों?*

शिक्षक संगठनों और अधिकारियों का सवाल है कि जब पहले से ही जनशिक्षक, बीआरसी, बीएसी, डीईओ, बीईओ और संकुल प्राचार्य जैसे अधिकारी विद्यालयों का नियमित निरीक्षण कर रहे हैं, तो फिर ई-अटेंडेंस की आवश्यकता क्यों पड़ी?

यह नई प्रणाली यह जताती है कि लोक शिक्षण संचालनालय को अब अपनी ही टीम पर भरोसा नहीं रह गया है, जिससे संस्थागत व्यवस्था कमजोर होती जा रही है।

 

सभी अधिकारियों से आह्वान – एकजुट होकर करें विरोध

प्रदेश के शिक्षकों ने ब्लॉक एवं जिला स्तर के सभी अधिकारियों से अपील की है कि वे इस अन्यायपूर्ण, अपमानजनक और अविश्वासपूर्ण प्रणाली का विरोध करें। यह केवल शिक्षकों की समस्या नहीं है, बल्कि पूरे शिक्षा विभाग की गरिमा, प्रतिष्ठा और आत्मसम्मान से जुड़ा हुआ विषय है।

यदि अब भी सबने एक स्वर में आवाज़ नहीं उठाई, तो आने वाले समय में प्रशासनिक स्वायत्तता और विश्वास का स्थान पूरी तरह निगरानी और संदेह ले लेंगे।

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